जानिए ईद उल अजहा फेस्टिवल से जुड़े इंटरस्टिंग फैक्ट्स

ईद का पर्व मुस्लिम समुदाय के लिए एक खास महत्व रखता है। मुसलमान एक इस्लामी वर्ष के दौरान न केवल एक बार बल्कि दो बार ईद मनाते हैं। जिनमें से एक रमजान के शुभ महीने के बाद आती है, जिसे ईद उल-फितर या छोटी ईद व मीठी ईद भी कहा जाता है। वहीं, दूसरी ईद मीठी ईद के लगभग 70 दिन बाद आती है, जिसे ईद उल-अजहा या बड़ी ईद व बकरीद भी कहा जाता है। यूं तो इन दोनों ही ईद के अपने-अपने मायने हैं, लेकिन बकरीद मुसलमानों के लिए साल के सबसे पवित्र समय का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि यह हज यात्रा का प्रतीक है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको ईद-उल-अजहा पर्व से जुड़े कुछ इंटरस्टिंग फैक्ट्स के बारे में बता रहे हैं-

 

बेहद खास है ईद उल-अजहा का पर्व

 

ईद उल-अजहा के पर्व को कुर्बानी के पर्व के रूप में देखा जाता है। इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। जब इब्राहिम को यह सपने बार-बार आने लगे, तो उन्होंने इसे अल्लाह का फरमान समझा और उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। लेकिन अल्लाह ने इब्राहिम की त्याग की सच्ची भावना को देखते हुए उनके बेटे की जगह एक जानवर की बलि स्वीकार की।

 

हर जानवर की नहीं दे सकते कुर्बानी

 

बहुत से लोग यह समझते हैं कि ईद उल-अजहा के पर्व में किसी भी जानवर की कुर्बानी दी जा सकती हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। इस खास दिन ऐसे किसी भी जानवर की कुर्बानी देने की इजाजत नहीं है, जिसे शारीरिक रूप से कोई बीमारी या समस्या हो। साथ ही बेहद छोटे पशु की बलि भी स्वीकार्य नहीं होती।

 

 

 

तीन हिस्सों में बांटा जाता है मांस

कुर्बानी के बाद मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। जिसमें पहला गरीबों में बांटा जाता जाता है, जबकि दूसरा रिश्तेदारों को दिया जाता है और तीसरा खुद के लिए व परिवार के सदस्यों के लिए रखा जाता है।

जरूरी नहीं है जानवर की कुर्बानी

 

ईद उल-अजहा को कुर्बानी के त्योहार के रूप में देखा जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति जानवर की कुर्बानी ही दें। कुरान में बताया गया है कि अगर वह अपनी कमाई का ढ़ाई प्रतिशत दान देता है और फिर इसके बाद सामाजिक कार्यों में अपना धन कुर्बान करता है तो यह आवश्यक नहीं है कि वह बकरे की कुर्बानी दे। वास्तव में बकरे की कुर्बानी प्रतीकात्मक होती है।

 

बकरे से नहीं पड़ा बकरीद नाम

 

बड़ी ईद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है, इसलिए अधिकतर लोग बकरीद को बकरे से जोड़कर देखते हैं। हालांकि, इसका शाब्दिक अर्थ बकरे से जुड़ा हुआ नहीं है। बकरीद में, बकर शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है बड़ा जानवर जो जि़बह किया अर्थात् काटा गया।

 

मिताली जैन

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